नई दिल्ली ब्लेडबाजी के लिए कुख्यात तिहाड़ के कैदियों में लगता है जेल सुरक्षा कर्मियों का डर भी खत्म हो चुका है। तंबाकू की फरमाइश पूरी न होने पर कैदी ने ब्लेड से वार कर सिपाही का कान काट डाला। हरिनगर पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। 12 अप्रैल को जेल न. 2 में विचाराधीन कैदी लाजपत की तबीयत खराब हो गई थी। उसे दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में भर्ती कराया गया था। सिपाही ओमप्रकाश उसके साथ गया था। लाजपत को उपचार के बाद ओमप्रकाश अपने साथ लेकर एंबुलेंस की तरफ जा रहा था। रास्ते में कैदी ने सिपाही से तंबाकू मांगी। ओमप्रकाश ने कहा कि यह कानूनन जुर्म है। कैदी ने सिपाही ओमप्रकाश को देख लेने की धमकी दे डाली।ं कैदी ने सिपाही को धमकाया कि वह हाई रिस्क वार्ड में रहता है। इस लिहाज से एक-दो मुकदमें और भी हो जाएं तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन तंबाकू न देने का सबक सिखाकर रहेगा। ओमप्रकाश कैदी को जेल लेकर चला आया। लेकिन जेल पहुंचने के बाद लाजपत ने अपनी हाजिरी लगवाई और पलटकर बगल में खड़े ओमप्रकाश के कान पर ब्लेड से वार कर दिया। ओमप्रकाश का कान कट गया। उसे इलाज के लिए दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल ले जाया गया। हरिनगर पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है। ओमप्रकाश दिल्ली पुलिस के डीएपी थर्ड बटालियन में तैनात है। विकासपुरी स्थित पुलिस लाइन में रहने वाला यह सिपाही तिहाड़ जेल से कैदियों को कोर्ट और अस्पताल ले जाने का काम करता है।
तंबाकू विरोधी मोर्चा (Anti-Tobacco Forum)
Saturday, April 16, 2011
प्लास्टिक पैकिंग पर कोर्ट का रोक हटाने से इंकार
नई दिल्ली गुटखा व पान मसाला की प्लास्टिक पैकिंग पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक जारी रखी है और गुटखे से सेहत तथा प्लास्टिक से पर्यावरण को नुकसान का मुद्दा उठाने वाले संगठनों और स्वयं सेवी संस्थाओं को भी पक्षकार बना लिया है। हालांकि कोर्ट ने पान मसाला गुटखा उद्योग को भी पक्षकार के तौर पर शामिल करते हुए अपनी बात रखने की इजाजत दी है। बुधवार को न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी व न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन की पीठ ने रोक हटाने से इंकार करते हुए सभी अर्जीकारों की पक्षकार बनने की मांग स्वीकार कर ली। पीठ ने कहा कि वे सभी का पक्ष सुनेंगे। कोर्ट ने पर्यावरण की सुरक्षा की दृष्टि से गुटखा के अलावा बाकी उत्पादों की प्लास्टिक पैकिंग पर भी रोक लगाने की गैर सरकारी संगठन दिल्ली स्टडी ग्रुप की मांग पर सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलीसिटर जनरल गोपाल सुब्रह्मण्यम से चार सप्ताह में अर्जीकारों की मांगों का जवाब देने को कहा। इसके चार सप्ताह बाद अन्य पक्षकार अपना उत्तर देंगे। पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह गत 17 फरवरी की तंबाकू के इस्तेमाल पर आई रिपोर्ट की प्रतियां दो सप्ताह के भीतर अन्य पक्षकारों को उपलब्ध कराए। इससे पहले कई पान मसाला गुटखा निर्माता कंपनियों ने अर्जी दाखिल कर मामले में पक्षकार बनाए जाने का अनुरोध किया। दूसरी ओर इंडियन डेंटल एसोसिएशन के वकील विष्णु बिहारी तिवारी ने भी स्वास्थ्य का मुददा उठाते हुए मामले में पक्षकार बनाए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि एसोसिएशन लगातार गुटखे के नुकसान के प्रति लोगों को सचेत करती है और इसके खिलाफ मुहिम चलाती है। एसोसिएशन चाहती है कि तंबाकू युक्त गुटखे व पान मसाले की बिक्री पर पूरी तरह रोक लगाई जाए। उन्होंने इसके पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने और केंद्र सरकार को ज्ञापन दिए जाने का भी हवाला दिया और कहा कि केंद्र सरकार ने उनके ज्ञापन के जवाब में कहा है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इसलिए वह कोई आदेश जारी नहीं कर सकती। पीठ ने तिवारी की दलीलें सुनने के पक्षकार बनने की उनकी मांग स्वीकार कर ली। पीठ ने 20 जुलाई को सुनवाई की तिथि तय करते हुए कहा कि तब कोई स्थगन नहीं होगा। गत 2 फरवरी को भी कोर्ट ने गुटखे की प्लास्टिक पैकिंग पर प्रतिबंध की तिथि बढ़ाने से इंकार कर दिया था और केंद्र सरकार से निर्धारित तिथि तक इस बावत अधिसूचना जारी करने को कहा था। केंद्र सरकार ने 4 फरवरी को अधिसूचना जारी कर गुटखा व पान मसाले की प्लास्टिक पैकिंग पर रोक लगा दी थी। मालूम हो कि कुछ पक्षकारों ने प्रतिबंध की अधिसूचना को भी भेदभाव वाला बताते हुए चुनौती दी है और कुछ ने प्रतिबंध के बावजूद गुटखे की प्लास्टिक पैकिंग में बिक्री जारी रहने का आरोप लगाते हुए अवमानना अर्जी दाखिल कर रखी है।
कहीं यह गुटखा जानलेवा तो नहीं!
अधिक कमाई के चक्कर में विक्रेता नकली गुटखे बनाकर लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने प्लास्टिक पाउच की पैकिंग पर प्रतिबंध लगा दिया, मगर इसके बाद मार्केट में गुटखे की कालाबाजारी और बढ़ गई। गुटखे की ऊंची कीमतों के चलते अब नकली गुटखा बनाने वाले सक्रिय हो गए हैं। हाथरस में दो दिन पहले ऐसी ही एक फैक्ट्री का पर्दाफाश हुआ है। यह फैक्ट्री गुटखा बनाने के लिए इंफेक्टेड लकड़ी, हैविट फार्मिग दवाइयां (अफीम), सोप इंस्टोन पाउडर के साथ अन्य कई तरह के घातक रसायनों का इस्तेमाल नकली गुटखा बनाने में करती थी। इन चीजों से बना गुटखा खाने से कैंसर और दांत गिरने का खतरा होता है। हैविट फार्मिग की वजह से गुटखे की लत लग जाती है। महामायानगर के जिलाधिकारी वाईके बहल ने कहा कि नकली गुटखे का निर्माण कतई नहीं होने दिया जाएगा। गुटखे की कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई के लिए एसडीएम को आदेश दिए गए हैं। बागला अस्पताल के वरिष्ठ फिजीशियन डा. आरपी सिंह का कहना है कि नशे की आदत से दिमाग कमजोर हो जाता है।
मदहोशी में झूम रहा बचपन 10 से 13 साल की उम्र में हो जाते हैं शिकार नशे की लत :
बच्चे देश का भविष्य हैं लेकिन जब वह गलत राहों पर चलकर अपने उज्जवल भविष्य को अंधकारमय कर लेते हैं तो एक अच्छी खासी दुनिया उजड़ जाती है। ऐसा देखा गया है कि छोटे बच्चे फेवीकल, बूट पालिश, डेंड्राइट, नेल पालिश आदि सूंघने का शौक रहते हैं, जो धीरे-धीरे उन्हें नशे की ओर ले जाती है। जिस वजह से वह नशाखोरी के आदी हो जाते हैं। ऐसा देखा गया है कि 10 साल की उम्र से लेकर 13 साल की उम्र तक इस तरह के शौक की शुरूआत होती है। सबसे पहले घरवालों से छिपकर बच्चे डेंड्राइट व सिगरेट से शुरू करते हैं और जब वह इसके आदी हो जाते हैं तो रोजमर्रा के तौर पर लेना शुरू कर देते हैं। डा. सव्यसाची मित्रा के मुताबिक इस तरह का नशा बच्चे किसी भी जगह लेने लगते हैं। इसका मुख्य कारण परिवार में तनाव, मां-बाप में रोज झगड़ा, बुरी संगति का प्रभाव, माता पिता का अलग रहना, मानसिक संतुलन का ठीक न होना आदि है। नशे की पहली शुरूआत इस तरह के सूंघने से ही होती है, फिर सिगरेट, शराब, ड्रग्स, गांजा, चरस, अफीम, कोकीन, हिरोइन, तक पहुंच जाती है, जिससे एक साधारण जीवन नशे की गुलाम हो जाती है। जब ये सब नहीं मिलते है, तो वह नींद की गोलियां लेना शुरू कर देते हैं। कितने लोग तो शुरुआती दौर में मुफ्त नशे के सामान को बेचते हैं, फिर जब बच्चे उसके आदी हो जाते हैं तो वह उसे पाने के लिए चोरी करते है, अपने घरों में, बाहर में, और जब उतने पैसों से भी नहीं होता है, तो नशीले पदार्थो को बेचना शुरू कर देते है। इसके सबसे ज्यादा शिकार लड़के होते है। ऐसा नहीं है कि इससे छुटकारा नहीं पाया जाता है, सबसे पहले बच्चों को काउंसिलिंग में भेजा जाता है, फिर माता पिता का भी काउंसिलिंग किया जाता है, उनके बातों को सुनकर सोच समझ कर, बच्चों को डिटाक्सिफिकेशन सेंटर भेज दिया जाता है, जिससे वहां उन्हें इस बुरी लत से दूर किया जाता है।
गुटखा की कालाबाजारी
गुटखा विक्रेताओं के अनुसार शहर के करीब 10 होलसेलरों ने जमा कर रखा है करोड़ों का माल, कागज के पाउच में आने के बावजूद दुगने-तिगुने दामों में बेच रहे हैं पुराना माल
पान मसाला व गुटखा की बेरोकटोक कालाबाजारी के कारण होलसेलर अंधी कमाई में लगे हैं। वे 262 रु. में 50 पाउच का रजनीगंधा का पैक, माल नहीं होने का बहाना बनाकर फुटकर विक्रेताओं को 510 से 550 रु. में बेच रहे हैं। ऐसे में उपभोक्ताओं को 300 फीसदी ज्यादा दाम चुकाने पड़ रहे हैं। छह रु. का पाउच एक माह से 12 से 18 रु. में खरीदना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि पूरे देश में गुटखा, पान मसाला की प्लास्टिक पाउच में बिक्री पर एक माह पहले रोक लगा दी थी। उसके बाद से शहर में होलसेलरों ने कालाबाजारी शुरू कर दी, जिस पर अब तक कोई लगाम नहीं लग पाई है। गुटखा विक्रेताओं के अनुसार शहर में हर माह करीब 20-25 लाख पाउच बिकते हैं। पुरानी रेट के हिसाब से करीब सवा करोड़ का कारोबार इन दिनों कालाबाजारी के चलते 2.5 से 4 करोड़ रु. पहुंच गया है। फुटकर कारोबारी अन्नु दासवानी ने बताया कि रजनीगंधा खाने वाले उपभोक्ताओं ने तिगुने दामों के कारण 10 से 20 फीसदी गुटखा कम कर दिया है। दस होलसेलरों द्वारा पूरे शहर के माल की कालाबाजारी किए जाने पर बाट एवं माप विभाग शिकायत प्राप्त होते ही छापेमारी कर सकता है, जिससे बाजार में केवल कागज के पाउच में ही गुटखा बिकेगा।
तंबाकू कंपनियों को कर्ज देने से बचने लगे बैंक
देश भर में तंबाकू उत्पादों के खिलाफ बढ़ती जागरूकता और सुप्रीम कोर्ट की सख्ती का असर चारों तरफ दिखाई दे रहा है। जिस दिन से सर्वोच्च न्यायालय ने पाउच में गुटखा बिक्री पर रोक लगाई है, उसके बाद से बैंकों ने तंबाकू क्षेत्र को कर्ज देना काफी कम कर दिया है। तंबाकू के अलावा शराब व अन्य नशीले पेय बनाने वाली कंपनियों को कर्ज देने से भी बैंक परहेज करने लगे हैं। बैंकों का यह रुख सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही दिखाई दिया है। अभी तक तंबाकू उत्पाद या बेवरेज (शराब सहित तमाम नशीले पेय उत्पाद) कंपनियों को वे खूब दिल खोलकर कर्ज दिया करते थे। चालू वित्त वर्ष में फरवरी, 2011 तक बैंकों ने तंबाकू व बेवरेज क्षेत्र को महज 11,762 करोड़ रुपये का कर्ज मुहैया कराया है। यह पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में मात्र 7.2 फीसदी ज्यादा है। पिछले वर्ष यानी मार्च, 2009 से फरवरी, 2010 की अवधि में इन उद्योगों को कर्ज देने की रफ्तार 29.6 फीसदी बढ़ी थी। साफ है कि तंबाकू व बेवरेज उद्योग को कर्ज की रफ्तार में 23 फीसदी की कमी आई है। जून, 2010 तक इस क्षेत्र को कर्ज की रफ्तार 39 फीसदी तक थी। दिल्ली स्थित एक सरकारी बैंक के शीर्ष अधिकारी ने बताया कि कर्ज देने में परहेज तंबाकू उद्योग की स्थिति को देखते हुए किया जा रहा है। बैंकों को लगता है कि तंबाकू उद्योग का भविष्य अच्छा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट नेदिसंबर, 2010 में एक फैसले के तहत प्लास्टिक पाउच में तंबाकू मिश्रित गुटखा की बिक्री पर राष्ट्रीय प्रतिबंध लगा दिया था। इससे पूरे तंबाकू उद्योग के भविष्य को लेकर सवाल उठ खड़े हुए हैं। तंबाकू की बिक्री में भी काफी गिरावट आई है। इसके अलावा शीर्ष अदालत में तंबाकू की बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का भी मामला विचाराधीन है। इससे बैंक सतर्कता बरत रहे हैं। कारण जो भी हो, कर्ज का नहीं मिलना तंबाकू कंपनियों के लिए दोहरी मार है। इस सबसे लोगों में तंबाकू सेवन की आदत भी कम हो रही है, जिसका असर इन कंपनियों के भविष्य पर पड़ना तय है।
Thursday, March 24, 2011
World TB Day- 24 March
Every year women are being evicted from the family due to TB- Health Minister
Lucknow 24 March. Every year more than one lac women are being evicted from their family due to TB in the country. This is the most unfortunate aspect of this disease. Today this information was given here by the Health Minister Ananat Kumar Mishra to the delegation of Indian Media Centre for Journalist (IMCFJ) on the occasion of World TB Day. IMCFJ is linked to the Central government’s campaign Akshay running against Tuberculosis. On this occasion several aspects of the campaign running against TB was discussed in Uttar Pradesh. Pawan Kumar, the leader of IMCFJ delegation said that the magnitude of TB can be imagined by this that every year 20 lacs people become TB victim in India. He added that according to estimation in every three minutes two people are dying due to TB.
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