बच्चे देश का भविष्य हैं लेकिन जब वह गलत राहों पर चलकर अपने उज्जवल भविष्य को अंधकारमय कर लेते हैं तो एक अच्छी खासी दुनिया उजड़ जाती है। ऐसा देखा गया है कि छोटे बच्चे फेवीकल, बूट पालिश, डेंड्राइट, नेल पालिश आदि सूंघने का शौक रहते हैं, जो धीरे-धीरे उन्हें नशे की ओर ले जाती है। जिस वजह से वह नशाखोरी के आदी हो जाते हैं। ऐसा देखा गया है कि 10 साल की उम्र से लेकर 13 साल की उम्र तक इस तरह के शौक की शुरूआत होती है। सबसे पहले घरवालों से छिपकर बच्चे डेंड्राइट व सिगरेट से शुरू करते हैं और जब वह इसके आदी हो जाते हैं तो रोजमर्रा के तौर पर लेना शुरू कर देते हैं। डा. सव्यसाची मित्रा के मुताबिक इस तरह का नशा बच्चे किसी भी जगह लेने लगते हैं। इसका मुख्य कारण परिवार में तनाव, मां-बाप में रोज झगड़ा, बुरी संगति का प्रभाव, माता पिता का अलग रहना, मानसिक संतुलन का ठीक न होना आदि है। नशे की पहली शुरूआत इस तरह के सूंघने से ही होती है, फिर सिगरेट, शराब, ड्रग्स, गांजा, चरस, अफीम, कोकीन, हिरोइन, तक पहुंच जाती है, जिससे एक साधारण जीवन नशे की गुलाम हो जाती है। जब ये सब नहीं मिलते है, तो वह नींद की गोलियां लेना शुरू कर देते हैं। कितने लोग तो शुरुआती दौर में मुफ्त नशे के सामान को बेचते हैं, फिर जब बच्चे उसके आदी हो जाते हैं तो वह उसे पाने के लिए चोरी करते है, अपने घरों में, बाहर में, और जब उतने पैसों से भी नहीं होता है, तो नशीले पदार्थो को बेचना शुरू कर देते है। इसके सबसे ज्यादा शिकार लड़के होते है। ऐसा नहीं है कि इससे छुटकारा नहीं पाया जाता है, सबसे पहले बच्चों को काउंसिलिंग में भेजा जाता है, फिर माता पिता का भी काउंसिलिंग किया जाता है, उनके बातों को सुनकर सोच समझ कर, बच्चों को डिटाक्सिफिकेशन सेंटर भेज दिया जाता है, जिससे वहां उन्हें इस बुरी लत से दूर किया जाता है।
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